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हर दफ़ा एक-सा हादसा हो गया / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
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हर दफ़ा एक-सा हादसा हो गया
जो भी अच्छा लगा वो ख़ुदा हो गया
आज का दौर दौर-ए-जफ़ा हो गया
आदमी आदमी के सिवा हो गया
बेकराँ धूप पहले ही थी हमसफ़र
और फिर बेशजर रास्ता हो गया
ये हमारे लहू की ही तासीर थी
ज़ख़्म भरने लगा कि हरा हो गया
सू-ए-मंज़िल है वो बेपता-बेपता
और हमारा पता मैकदा हो गया
देखते-देखते बारहा आजकल
बेपरों का का परिंदा हवा हो गया
रास आई कहाँ बावफ़ाई हमें
जिसको चाहा वही बेवफ़ा हो गया