भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर दिन उनसे क्यूं मिलने का मन करता है / सुजीत कुमार 'पप्पू'
Kavita Kosh से
हर दिन उनसे क्यूं मिलने का मन करता है,
यूं ही कुछ कहने-सुनने का मन करता है।
जब से नैन मिले तब से दिल बेदार हुआ,
दिन-रात उन्हीं को गुनने का मन करता है।
आते-जाते प्यार हुआ दिल बीमार हुआ,
धीरज के तारे चुनने का मन करता है।
जाने क्या-क्या बात हुई आंखों-आंखों को,
वो ताना-बाना बुनने का मन करता है।
इक गुलशन अपना हो चाहत के मौसम का,
उसमें धीरे से खिलने का मन करता है।