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हर मर्ज की कहने को दुनियाँ में दवा भी है / रंजना वर्मा

हर मर्ज़ की कहने को दुनियाँ में दवा भी है
खाकर के दवाएँ भी पर शख़्स मरा भी है

करते हैं मशक्क़त सब जीने के लिये लेकिन
अजगर न करे कुछ भी लोगों ने कहा भी है

बल अपनी भुजाओं का तोला जो करे हरदम
मुश्किल घड़ी में रब को देता वह सदा भी है

मिलता है रहा उल्फ़त से ख़्वाब की दुनियाँ में
जाना ही नहीं होता ये ख़्वाब जुदा भी है

इंसान की बस्ती में कुछ शोर-सा है बरपा
हर साँस ये कहती है हम हैं तो खुदा भी है

कोई न समझ पाया उल्फ़त के तरीकों को
खुशियाँ हैं मसर्रत है ग़म भी है वफ़ा भी है

तनहाइयों में अक्सर उठते हैं कई तूफ़ां
यादों का जजीरा है अपनों से गिला भी है