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हर लम्हा दिल-दोज़ ख़ामोशी चीख़ रही है / जमाल ओवैसी

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हर लम्हा दिल-दोज़ ख़ामोशी चीख़ रही है
मैं हूँ जहाँ तन्हाई मेरी चीख़ रही है

घर के सब दरवाज़े क्यूँ दीवार हुए हैं
घर से बाहर दुनिया सारी चीख़ रही है

ख़ाली आँखें सुलग रही हैं ख़ुश्क हैं आँसू
अंदर अंदर दिल की उदासी चीख़ रही है

तूफ़ानों ने सारे ख़ेमे तोड़ दिए हैं
यूँ लगता है सारी ख़ुदाई चीख़ रही है

रात की चीख़ों से आबाद हुआ हर ख़ित्ता
कब से नवेद-ए-सुब्ह बेचारी चीख़ रही है

कारोबार न करना लोगो देखो दिल है
इक मुद्दत से रूह हमारी चीख़ रही है