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हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा/ विनय प्रजापति 'नज़र'
Kavita Kosh से
लेखन वर्ष: २००४/२०११
हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा
बादे-मतलब<ref>मतलब पूरा होने के बाद, after fulfilment of need</ref> उसने मुझसे अलविदा कहा
जिसको मैं मानता हूँ धोख़:-ओ-अय्यारी<ref>धोख़ा और चालाकी, cheat and selfishness</ref>
ज़माने ने उसको हुस्न की इक अदा कहा
वह प्यार जिसे एहसास कहते हैं सब लोग
उसने आज उसको बदन की इक सदा<ref>पुकार, call</ref> कहा
मैं था उसका ज़माने की ग़ालियाँ खाकर
उसने मुझे किसी ग़ैर हुस्न पर फ़िदा कहा
जिन आँखों का तअल्लुक<ref>सम्बंध, relation</ref> रहा है मस्जिद से
उन्हें उसके यार ने महज़ मैक़दा कहा
उससे थी मेरे अपने ज़ख़्मों की कहानी
और उसने नये ज़ख़्मों को तयशुदा<ref>निश्चित, certain</ref> कहा
शब्दार्थ
<references/>