भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा/ विनय प्रजापति 'नज़र'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लेखन वर्ष: २००४/२०११

हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा
बादे-मतलब<ref>मतलब पूरा होने के बाद, after fulfilment of need</ref> उसने मुझसे अलविदा कहा

जिसको मैं मानता हूँ धोख़:-ओ-अय्यारी<ref>धोख़ा और चालाकी, cheat and selfishness</ref>
ज़माने ने उसको हुस्न की इक अदा कहा

वह प्यार जिसे एहसास कहते हैं सब लोग
उसने आज उसको बदन की इक सदा<ref>पुकार, call</ref> कहा

मैं था उसका ज़माने की ग़ालियाँ खाकर
उसने मुझे किसी ग़ैर हुस्न पर फ़िदा कहा

जिन आँखों का तअल्लुक<ref>सम्बंध, relation</ref> रहा है मस्जिद से
उन्हें उसके यार ने महज़ मैक़दा कहा

उससे थी मेरे अपने ज़ख़्मों की कहानी
और उसने नये ज़ख़्मों को तयशुदा<ref>निश्चित, certain</ref> कहा

शब्दार्थ
<references/>