भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर श्रमिक श्रमदान अपना उम्र भर देता रहा / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर श्रमिक श्रमदान अपना उम्र भर देता रहा
विश्व को अवदान अपना उम्र भर देता रहा

देश यह आगे बढ़े बस लक्ष्य रहता सामने
सब तरह बलिदान अपना उम्र भर देता रहा

जी रहा कठिनाइयों में आजतक परिवार है
त्याग कर हर ध्यान अपना उम्र भर देता रहा

मिल नहीं पातीं इसे दो वक्त की भी रोटियाँ
शेष जो अभिमान अपना उम्र भर देता रहा

श्रेय मिलता है कहाँ इसको किसी निर्माण का
भूल कर सम्मान अपना उम्र भर देता रहा