भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर सू तेरा किस्सा रक्खा / प्रणव मिश्र 'तेजस'
Kavita Kosh से
हर सू तेरा किस्सा रक्खा
राह में जैसे काँटा रक्खा
आने की उम्मीद में तेरी
दिल को कितना समझा रक्खा
हर आहट पर कान लगा है
दर पर अपना साया रक्खा
तेरी बस्ती के बच्चों से
टॉफी वाला रिश्ता रक्खा
होंठ कहीं पर जुल्फ कहीं पर
हर चेहरे में चेहरा रक्खा
नींद से मुझको डर लगता है
आँखों पर इक पहरा रक्खा
'तेजस' तो बिल्कुल पागल है
उसकी बातों में क्या रक्खा