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हलवा-पूरी / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
सब पर अपना रोब जमाते
नन्हे-मुन्ने चिंटू जी।
भैया से अब्बा करते हैं
दीदी से करते हैं कुट्टी,
पापा से कहते हैं-मेला
दिखलाओ जी, कल है छुट्टी।
कैसे-कैसे दावँ चलाते
नन्हे-मुन्ने चिंटू जी!
हलवा-पूरी जी भर खाते
या फिर बरफी पिस्ते वाली,
रसगुल्ले जब आते घर में
आ जाती चेहरे पर लाली।
धमा-चौकड़ी खूब मचाते
नन्हे-मुन्ने चिंटू जी!
हरदम बजती पीं-पीं सीटी
सारे दिन ही हल्ला-गुल्ला,
कोई टोके तो कहते हैं-
क्या मैं बैठा रहूँ निठल्ला?
बिना बात की बात बनाते,
नन्हे-मुन्ने चिंटू जी!