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हवा जो आ रही नम आज कुछ जादा ही भाती है / शेष धर तिवारी
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हवा जो आ रही नम आज कुछ जादा ही भाती है
किसी की आँख का सारा समंदर सोंख आती है
वो जब आकाश को परवाज़ क़े काबिल नहीं पाती
तो चिड़िया खुद ब खुद पिंजरे में आकर बैठ जाती है
हमारे दर्द को कोई समझ ले है ये नामुमकिन
कोई भी आँख छाले रूह क़े कब देख पाती है
तपिश चाहत में हो औ सोज हो ज़ज्बात में पैहम
तो जिद की बर्फ धीरे धीरे आखिर गल ही जाती है
खुदा तू ही बता किस नाम से तुझको पुकारूं मैं
तेरे बन्दों को समझाने में मुश्किल पेश आती है