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हवा ने छोड़ दिए / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
हवा ने छोड़ दिए
अपने
बेलगाम दौड़ते
बलिष्ठ घोड़े
यथार्थ के समर्थन में
अतीत से जुड़ा वर्तमान
त्रस्त है
जमीन पर
रौंदते खुरों के
घटना-चक्र से
समाप्त हो गया है
समय का
स्थित-प्रज्ञ संतुलन
क्रांतिकारी उलटफेर के
बल और वेग से
दिन और रात के जोड़
खुल गए हैं
अबंध घुड़दौड़ के लिए
प्राचीन को चीरता बढ़ रहा है
उत्तरोत्तर आगे
आग का समूह
प्रतिगामी इकाइयों को
परास्त करता
पूर्ववत्
न रहे
यथास्थान
भूगोल के
सुरक्षित
अक्षांश और
देशांतर
रचनाकाल: १४-०६-१९६८