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हवा / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
जैसे
कोई बहुत लम्बी छुट्टियाँ
बिता रहा हो ख़ामोश
हवा
यहाँ से
उत्तर की तरफ़ बहती है
एक पुराने तालाब के
नए-नए पानी में जहाँ
लहरें उठती हैं
एक
पूरा चक्कर लगाने के बाद
काले पत्थरों को
छूती हुई
पूर्व की तरफ़ जाती है हवा
कुछ और
हल्की हो
लौटती है
कहीं
कुछ न घट रहा हो
कहीं
पेड़ पर पत्ता न हिल रहा हो
कहीं
ठहरा हो दिन चुपचाप
यह
ज़रूर जाएगी
उस तरफ़
व्यतीत करती हुई
ख़ामोश
अपनी छुट्टियाँ