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हवा / नरेन्द्र शर्मा

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यह बहकी-बहकी चाल,
हवा बहकाने आई है!
सौरभ का जादू डाल,
फूल महकाने आई है!

है बादामी-संदली-
सुरभि की देह न छूने की,
कर्पूर-द्वीप की कली-
ज्योति मणि-मंदिर सूने की!
यह मधुबन की मधुज्वाल,
हृदय दहकाने आई है!

दो पंखड़ियों-से पाँव,
युगल गुलछड़ियों-सी टाँगें!
कदली की क्वाँरी छाँव,
प्राण-मन आलिंगन माँगे!
बाँहों की चम्पकमालम,
चाह लहकाने आई है!

वह स्वयं परस से परे,
परसती तन-मन नृत्य-रता;
पद-चिह्न राग-रस-भरे-
प्रफुल्लित मेरी देह-लता!
गीतों के शुक-पिक-बाल
हवा चहकाने आई है!