भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाँ रे, तीन खूंट पिरथिबी छिलावेलें / भोजपुरी
Kavita Kosh से
हाँ रे, तीन खूंट पिरथिबी छिलावेलें, चनन छिरिकि देले हे।
हाँ रे, अँतरे-अँतर बगिया जे लाई दिहले, कहाँ रे दल उतरेला हे।।१।।
हाँ रे, धाउ-धाउ नउवा से बरिया, त अउरो बभनपूत हे
हाँ रे, राजा आगे बटिका जनावहु, कहाँ रे दल उतरेला हे।
हाँ रे, अँतरे-अँतरे बगिया जे लाइ दिहले, कहाँ रे दल उतरेला हे।।२।।
हाँ रे, पार पड़ोसिन, गोतिन, अउरो से गोतिन हे,
हाँ रे, चलु-चलु गउरी बर देखे, कहाँ के दल उतरेले हे
हाँ रे, अँतरे-अँतरे बगिया जे लाइ दिहले, कहाँ के दल उतरेला हे।।३।।
हाँ रे, छोटी जे डँड़िया के सबुजी ओहारवा, माथवा में सोमइ गे मउरिया,
कहाँ के दल उतरेले हे,
हाँ रे अँतरे अँतरे बगिया जे लाई बिहले, कहाँ के लद उतरेला हे।।४।।