हाइकु -3 / विभा रानी श्रीवास्तव
दीपकोत्सव-
स्याह अँधेरा फैले
साझे दर पै।
मधुयामिनी
संकेतक रौशनी
पर्दे के पास |
चाँद पै मेघ -
दूल्हे मियाँ गायब
रूनुमाइ से।
रास पूर्णिमा-
चौपड़ पर जीती
साले की घड़ी।
ज्ञानदा पूजा-
गूंगे भक्त ने पायी
बांसुरी भेंट ।
पुत्री दिवस-
पँख फड़फड़ाई
चिड़ी मुक्त हो।
पथ पै गड्ढ़े-
तम में बाँह खींचे
गुरु भुवेश ।
पी परदेश-
तलाश रही विभा
सप्तर्षि तारे।
विजयोत्सव-
सिंदूर की रंगोली
कुर्ते(शर्ट) पै सजी।
सूखी छीमियाँ
बाजे झाँझर गूंज
बैसाखी धुन।
छाते में भीड़
पथ पर चलते
छत्रक छाया ।
झड़ा दौंगड़ा
लीपने की खुशबू
चौके से आई ।
ड्योढ़ी पे सुता
थिरकती फांदती-
ताल में बूँदे।
ढूँढे़ सहारा-
चोंच में लिए तृण
मरु में ठूंठ ।
बीरबहूटी-
गाँठ बूटे चुन्नी पे
मुन्नी के काढ़े।
भू शैय्या पे माँ-
लॉकर खंगालते
बेटा बहुयें ।
स्त्री की त्रासदी
स्नेह की आलिंजर
प्रीत की प्यासी ।
पीड़ा मिटती
पाते ही स्नेही-स्पर्श
ओस उम्र सी ।
झटकी बाल
नहाई निशा ज्यूँ ही
ओस छिटके ।
सोना बिखरा-
ड्योढी पर अम्बार
दौनी गेहूँ की ।
क्षण कौंध में
साये लिपटे खड़े-
ड्योढ़ी पे वृक्ष ।
भू पे दरारें
बयाँ न कर पाऊँ
तन तपन ।
नवजाताक्षि
खोलना व मूँदना
मेघ में तारे।