हाइकु / कविता भट्ट / रश्मि विभा त्रिपाठी
1
मेरे आँगन
प्रतीक्षा गीत गाए
प्रिय आ जाए।
मोरे अँगना
अगोरा गउनावै
पिय आवइ।
2
प्रिय! प्रतीक्षा
शीत- सी है चुभती
कब आओगे।
पिय! अगोरा
सीत अस सालहि
कबै अइहौ।
3
धरा के प्राण
अम्बर में बसते
किन्तु विलग।
भुई के प्रान
अम्बर माँ बसहिं
तहूँ नियार।
4
जब भी जागूँ
मन- प्राण समान
तुमको पाऊँ।
जब्हूँ जागहुँ
मन- परान सम
तुम्का पावहुँ।
5
घाटी- सी देह
नदी प्राण- सी बहे
गाती ही रहे।
घाटी-स देहीं
नदी प्रान-स बहै
गउतै रहै।
6
बहे है नीर
हुईं आँखें भी झील
झील के तीर।
बहइ नीर
आँखिंउँ हूँन झीलि
झीलि कै तीरे।
7
झील- सी हूँ मैं
देखो, खोजो स्वयं को
मेरे भीतर।
झीलि अस मैं
द्याखौ ट्वाहौ आपु का
मोरे भिंतरै।
8
यादों की बूँदें
मन- आँगन पड़ीं
सुगन्ध उड़ी।
सुधि कै बूँनी
ही- अँगना परिन
खुस्बू उड़िस।
9
आओ सजन
यादों के झूले पर
झूलेंगे संग।
आवहु कंत
सुधि कै झूला पैंहाँ
लगे झूलिबे ।
10
मन की पीर
बैठा है गाँव में ही
जमुना- तीर ।
मन कै पीर
बैठ गाँवइ मैंहाँ
जमुन तीर।
11
खिड़की रोई
दीवार से लिपट
मेरा न कोई।
खिर्की रोइसि
भितिया अँकवारि
मोर ना कौनि।
12
जब भी रोया
विकल मन मेरा
तुमको पाया।
जबौ रोइसि
अकुलान ही मोरा
तुमका पावा।
13
धरूँ बाहों में
तेरी बाहें सजन
सर्दी गहन।
धरौं बाँहीं माँ
तोरी बाँहीं साजन
जाड़ु गहन।
14
छीन न लेना
एक ही लिहाफ है
तेरी प्रीत का।
छिना न लीन्हौं
एकै लिहाफ हवै
तोरी प्रीत कै।
15
नेह तुम्हारा
सर्दी की धूप जैसा
उँगली फेरे।
नेह तुम्हार
जस घाम जाड़ा कै
अँगुरी फेरै।
16
बर्फ चादर
कली- सी सिमटती
देह की शोभा।
बर्फ़ जाजिम
कली अस सकिलै
देहीं कै सोभा।
17
पीपल छाँव
प्राण बसते जहाँ
कहाँ है गाँव।
पिपरा छाँही
प्रान बसइँ जहँ
गाँव ह्वै कहँ।
18
अलाव- सा है
सर्द रात पीड़ा में
प्रेम तुम्हारा।
कउरा अस
जूड़ राति पीरा माँ
नेहा तुम्हार।
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