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हाइकु / कृष्ण शलभ
Kavita Kosh से
जिओगे कैसे
यदि मर ही गया
तुम्हारा मन ।
पुकारा तुम्हें
तो आवाज़ ही लौटी
तुम न आये ।
सरसों खिली
बही पीली नदी-सी
वसन्त आया ।
सुन री बेल
बढ़ना है तो रख
जड़ों से मेल ।
ओस के मोती
लील ही गई धूप
भोर होते ही ।
जलना है तो
ईर्ष्या में मत जल
दीये-सा जल ।
अकेले कहाँ
कारवाँ होगा पीछे
चलो तो सही ।
लिख रहा है
वो पसीने में नहा
कर्म की गीता ।