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हाइकु / शिवजी श्रीवास्तव / रश्मि विभा त्रिपाठी

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1
खेतों में धान
इन्द्रदेव रूठे हैं
क्या होगा राम!

खित्वा माँ धान
इन्द्रदेव रिसान
का होई राम!
2
लगती भली
धूप अगहन की
माँ की गोद- सी।

लागहि नीक
घाम अगहन कै
माँ कै गोदी स।
3
धरती जले
गुलमोहर खिले
ग्रीष्म की धूप।

भुइँयाँ जरै
गुल्मोहर बिक्सिन
घाम गर्मी कै ।
4
पुष्प नन्हा- सा
खिला, महका, झरा
यही जीवन।

फुल्वा नान्ह कै
बिक्सै, गमकै, झरै
जियब यहै।
5
आम बौराया
फागुनी बयार ने
चूमा है उसे।

आम बौरान्ह
फागुन कै बयारि
चुम्मै वहिका।
6
नैन तुम्हारे
महाकाव्य रच दें
जहाँ निहारें।

आँखीं तुम्हरीं
महाकाव्य रचइँ
जैसी लखइँ।
7
बेटियाँ हँसी
छेड़ दी हवाओं ने
सरगम- सी।

बेटी हँसिसि
हवा छेड़ि दीन्हिसि
सर्गम अस।
8
कली हँस दी
चूम के भागा अभी
एक भँवरा।

कली हँसिसि
चूम्मि कै भाग अब्हीं
याक भउँरा।
9
तुमने झाँका
सरिता- जल में
चाँद लजाया।

तुम झाँकिउ
नदिया जल माहिं
चन्ना लजावा।
10
धूप न आई
सूरज दादा सोए
ओढ़ रजाई।

घाम न आवा
सूर्ज दादा सयने
ओढ़ि रजैय्या।
11
सुर्ख़ गुलाब
डायरी में अब भी
तुम्हारी याद।

लाल गुलाब
डइरी माँ अबहूँ
तुम्हरी सुधि।
12
पत्ते झरते
आ जाते फिर नए
शाश्वत सत्य।

पात झरहिं
आवैं बहुरि नए
सास्वत साँच।
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