भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 121 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज री सीख
हाथ पसार मती
बूकिया ताण


चावै उडणो
मती लगा पांखां थूं
पांखां उगाव


देस री नींवां
खोद‘र बणावां हां
नुंवो भारत