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हाइकु 139 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
विभीषण तो
सदा निरादरीजै
दरबारां में
जिका पळै है
गमला में, बै रूंख
रै बोनसाई
माटी रो रूप
नित रो बदळाव
नियति इसी