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हाइकु 148 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
आंसू सूं तर
आंख ई समझै है
सुख रो मोल
ऊजळै गाभै
तुरतै लागै दाग
सावचेत रै
वैश्वीकरण
मर रैयी भाषावां
मिटै संस्कृति