भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 148 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आंसू सूं तर
आंख ई समझै है
सुख रो मोल


ऊजळै गाभै
तुरतै लागै दाग
सावचेत रै


वैश्वीकरण
मर रैयी भाषावां
मिटै संस्कृति