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हाइकु 168 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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कदैई तो थूं
नाचण दै पूतळी
खुद री ताल
हर बल्ब री
नियति हुवै बस
फ्यूज हुवणो
काळ री भींतां
कैद हां सदीव सूं
मुगती कठै