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हाइकु 27 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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सै नै हंसावै
मन-मन में रोवै
खुद जोकर

हर गोपी नैं
लगाणा पड़ै चक्र
महारास में

पिंजरबंद
मैनावां भूल जावै
खुलै आभै नैं