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हाइकु 46 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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बापड़ो काच
नीं देखा पावै कीं भी
आंधी आंख्यां नै
सुण गंधारी!
खोल पाटी नैणां री
समै चेतावै
पून पौंचावै
दूर-दूर फूल रो
गंध-सनेसो