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हाइकु 67 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
बाळक-हंसी
अमोलक खजानो
खूट रैयो है
नारी थूं बण
करंट रो झटको
कुण छू सकै
कांटां सूं बचै
बै कदै न पा सकै
फूल-गुलाब