भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 90 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माथो कटावै
माथो नईं झुकावै
मरू रा पूत


प्राण लुटाया
पण कौल निभाया
पाबू-गोगाजी


प्रेम दीवाणी
मीरां नै जन्मा सकै
बस आ धरा