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हाज़री / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
खुला दरवाजा मत खड़काओ
कब से खोल कर रखा है...?
जब तुम चली थी
मैं ही रूकती - रूकती
आ रही हूँ
राहों संग रुकावटों संग
तेरी देरी
मेरी गैर हाज़री
पर मेरी पहुँच
तेरी हाज़री भी है...