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हाथी आया / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
हाथी आया गाँव में
सूँड़ उठाकर खड़ा हो गया
बड़े नीम की छाँव में ।
भारी-भरकम काला-काला
लम्बे-लम्बे दाँतों वाला
तोड़ रहा गन्ने की लाठी
लगता है शौकीन निराला
उठा-उठा कर सूँड़
मारता जाता अपने पाँव में
हाथी आया गाँव में ।।
कान बड़े हैं आँखें छोटी
सारी-सारी चमड़ी मोटी
हर दिन सुबह शाम खाता है
बारह सेर चून की रोटी
रोज़ नहाने को जाता है
काका के तालाब में
हाथी आया गाँव में ।।