भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथी / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
हाथी आता सूंड हिलाता
बच्चों तुम सब हट जाओ
चार पैर हैं इसके मोटे
कहीं न उनमें दब जाओ
कान सूप से इन्हें उठाकर
पंखे-सा झलता रहता है
आँखेँ छोटी पर तेजस्वी
तिलक लगाये रहता है
धम्मक धम्मक चलता है यह
चाल मस्त और मतवाली
सरकस में यदि करतब देखो
बजा उठोगे तुम ताली