हाथ देखने की कविता / नवारुण भट्टाचार्य / मीता दास
मैं सिर्फ़ कविता ही लिखता हूँ
यह कहना कोई काम की बात नहीं
इस बात को सुनकर कई लोगों को हँसी भी आएगी
पर मुझे हाथ देखना भी आता है
मैंने हवा का हाथ देखा है
हवा एक दिन आँधी बनकर
सबसे ऊँची इमारतों को ढहा देगी
मैंने भिखारी-बच्चों के भी हाथ देखे हैं
उन लोगों के कष्ट आगामी दिनों में कम होंगे
ऐसा ठीक-ठीक कहना मुश्किल है
मैंने बारिश का भी हाथ देखा है
उसके मन-मिज़ाज का कोई ठिकाना नहीं
इसलिए आप लोगों के पास
कम से कम एक छाते का होना ज़रूरी है
सपने का हाथ मैंने देखा है
अगर उसे पूरा करना है तो तोड़नी होगी नींद
मुहब्बत का भी हाथ मैंने देखा है
न भी चाहे तब भी वह सबको जकड़े रहेगी
विप्लवियों का हाथ देखना बड़े भाग्य की बात है
एक साथ वे कभी मिलते ही नहीं
और बहुतों के तो हाथ बम के फूटने से उड़ भी गए हैं
अमीरों के विस्तृत हाथ भी मुझे देखने पड़े हैं
उनका भविष्य अन्धकारमय है
मैंने बेहद दुखी रात का भी हाथ देखा है
उसकी भोर क़रीब है
मैंने जितनी भी कविताएँ लिखी हैं
उससे कहीं ज़्यादा हाथ देखे हैं
दया करके मेरी बातें सुनकर हंसिएगा नहीं
मैंने अपना हाथ भी देखा है
मेरा भविष्य आप लोगों के हाथ में है ।
मूल बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद : मीता दास