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हाथ - पाँव अँधियारा नाथे / शुभम श्रीवास्तव ओम

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हाथ - पाँव अँधियारा नाथे,
रस्ता सही अबूझ ।

साज़िश लादे हँसी उतरती
हँस लेने से सिर भन्नाता,
गीले ठण्डे हाथों में ज्यों
कोई नंगा तार थमाता’

आदिम प्रतिमाओं की चुप्पी
बौने बोते लूझ ।

क्रूर कहकहे लिए प्रश्न फिर
रात वही काली अनुबन्धित,
चुप रहना भी सख़्त मना है
उत्तर देना भी प्रतिबन्धित,

कन्धों पर बैताल चढ़े हैं
कहते उत्तर बूझ ।