भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाफ़िज़े का हुस्न दिखलाया है निस्यानी मुझे / वली दक्कनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाफ़िज़े का हुस्‍न दिखलाया है निस्‍यानी मुझे
है कलीद-ए-क़ुफ़्ल-ए-दानिश तर्ज़-ए-नादानी मुझे

मौजज़न है दिल में मेरे हर रयन में पेचोताब
जब सूँ तेरी ज़ुल्‍फ़ ने दी है परीशानी मुझे

क्‍यूँ परीरूयाँ न आवें हुक्‍म में मेरे तमाम
तुझ दहन की याद है मुहर-ए-सुलेमानी मुझे

यक पलक दूजे पलक सूँ नईं हुई है आशना
जब सूँ तेरे हुस्‍न ने बख़्शी है हैरानी मुझे

ऐ 'वली' हक़ रफ़ाक़त के अदा करते भी क्‍या
मुस्‍तहक़्क़-ए-मग़फि़रत आलूदा दामानी मुझे