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हाय, चुक गया अब सारा धन / सुमित्रानंदन पंत

हाय, चुक गया अब सारा धन,
रिक्त हो गया जीवन कोष!
बुझा चुका यह काल समीरण
कितने प्राण दीप निर्दोष!
लौट नहीं आ पाया कोई
जाकर फिर जग के उस पार,
उमर पूछ कर हाल वहाँ के
पथिकों का करता संतोष!