हाय, चुक गया अब सारा धन,
रिक्त हो गया जीवन कोष!
बुझा चुका यह काल समीरण
कितने प्राण दीप निर्दोष!
लौट नहीं आ पाया कोई
जाकर फिर जग के उस पार,
उमर पूछ कर हाल वहाँ के
पथिकों का करता संतोष!
हाय, चुक गया अब सारा धन,
रिक्त हो गया जीवन कोष!
बुझा चुका यह काल समीरण
कितने प्राण दीप निर्दोष!
लौट नहीं आ पाया कोई
जाकर फिर जग के उस पार,
उमर पूछ कर हाल वहाँ के
पथिकों का करता संतोष!