भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाय न आई / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
आज भी आई
कल भी आई
रेल बराबर सब दिन आई!
लेकिन दिल्ली से आजादी
अब तक अब तक हाय न आई,
हाय न आई!!
चिट्ठी आई
पत्री आई
डाक बराबर सब दिन आई
लेकिन दिल्ली से आजादी
अब तक अब तक हाय न आई,
हाय न आई!!
आफत ही आफत सब आई
लेकिन दिल्ली से आजादी
अब तक अब तक हाय न आई,
हाय न आई!!
रचनाकाल: १५-०९-१९४६