हार को हार मत मानकर बैठिए / रुचि चतुर्वेदी
हार को हार मत मानकर बैठिए हार भी जीत का हार पहनायेगी।
आज हमको पराजय जो है लग रही कल वही तो बड़ी जीत बन जायेगी।
क्या हुआ जो हमें थोड़ा रुकना पड़ा पाँव थकने लगे राह मुड़ना पड़ा।
हमसे अपने सभी हो गये दूर और जो थे बैरी हमें उनसे जुड़ना पड़ा॥
ये भी होता है जब राह चलते हैं हम जो चला ही नहीं पीर जानेगा क्या?
यूँ अकारण भी बैरी बनेंगे बहुत अपना जो ना हुआ अपना मानेगा क्या?
आज है जो अधूरा वही गीत कल सारी धरती स्वयं साथ में गायेगी॥
आज हमको पराजय जो है लग रही कल वही तो बड़ी जीत बन जायेगी॥
हार से मंत्र हम सीखते हैं बहुत कौन अपना विभीषण हुआ साथ में।
कोई रुठा हुआ अपने द्वंदी से मिल काम करने लगा हाथ दे हाथ में॥
अर्थ का अर्थ कोई लगा व्यर्थ में फिर किसी हार का हार बुनता ना हो।
झूठ के द्वार पर वह रंगोली सजा भोले भालों के हृदयों को चुनता ना हो॥
आज सूरज भले सांझ में ढल गया कल नयी भोर जीवन को मँहकायेगी॥
आज हमको पराजय जो है लग रही कल वही तो बड़ी जीत बन जायेगी।