हार छप्पर की नहीं है / विनय कुमार
हार छप्पर की नहीं है, जीत लपटों की नहीं।
आग की बस्ती किसी ने आज तक देखी नहीं।
कुछ चमक है रास्ते में और कुछ आँखों में है
रोशनी, माना, नहीं है पर अंधेरा भी नहीं।
वक्त की स्याही घुली हर रंग की दावात में
माफ़ करना फूल की तस्वीर बन सकती नहीं।
आप सुनकर क्या करेंगे, हम सुनाकर क्या करें
है बुरी ख़बरें बुरी, अच्छी ख़बर अच्छी नहीं।
चांदनी में दर्द का तड़का लगाकर जागिए
दिलरुबा सी रात सोने के लिए होती नहीं।
सब बदलते जा रहें हैं क्या मिसालें क्या मिज़ाज़
आँख हो या झील साहब अब कहीं पानी नहीं।
हर क़दम पर है नई तकनीक सदक़े जाइये
ज़िन्दगी ताज़ा मिलेगी मौत भी बासी नहीं।
साँप का कुचला हुआ सिर तो देखने उमड़ा शहर
कह गए लाठी दिखाकर देखिए टूटी नहीं।
मत सुनो ग़ज़लें विनय से टूट जायेगा नशा
जो शराबों को चढ़ा दे वह ग़ज़ल आती नहीं।