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हालत-ए-हाल के सबब, हालत-ए-हाल ही गई / जॉन एलिया
Kavita Kosh से
हालत-ए-हाल के सबब, हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया, शौक़ की ज़िंदगी गई
एक ही हादिसा तो है और वो ये के आज तक
बात नहीं कही गयी, बात नहीं सुनी गई
बाद भी तेरे जान-ए-जान दिल में रहा अजब सामान
याद रही तेरी यहाँ, फिर तेरी याद भी गई
उसके बदन को दी नमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक काबा भी सी गई
उसकी उम्मीद-ए-नाज़ का हमसे ये मान था के आप
उम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गई
उसके विसाल के लिए, अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल की थी खराब, और खराब की गई
तेरा फ़िराक जान-ए-जान ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फ़िराक में खूब शराब पी गई
उसकी गली से उठ के मैं आन पडा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गई