भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाले दिल सब को सुनाने आ गए / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाले-दिल सब को सुनाने आ गए
ख़ुद मज़ाक अपना उड़ाने आ गए

फ़ूँक दी बीमाशुदा दूकान ख़ुद
फिर रपट थाने लिखाने आ गए

मार डाली पहली बीवी, क्या हुआ
फिर शगुन ले के दिवाने आ गए

खेत, हल और बैल गिरवी रख के हम
शहर में रिक्शा चलाने आ गए

तेल की लाइन से खाली लौट कर
बिल जमा नल का कराने आ गए

प्रिंसीपल जी लेडी टीचर को लिए
देखिए पिक्चर दिखाने आ गए

हाँकिया ले कर पढ़ाकू छोकरे
मास्टर जी को पढ़ाने आ गए

घर चली स्कूल से वो लौट कर
टैक्सी ले कर सयाने आ गए

काँख में ले कर पड़ौसन को जनाब
मौज मेले में मनाने आ गए

बीवी सुन्दर मिल गई तो घर पे लोग
ख़ैरियत के ही बहाने आ गए

शोख़ चितकबरी गज़ल ले कर 'यक़ीन'
तितलियों के दिल जलाने आ गए