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हाहाकार केहेन / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
माँसु केर निःशेष यौवन
अस्थि केर कंकाल काया
चेतना सँ शून्य जे से
चाम केर संसार केहेन?
श्रमिक जाँतल छथि कफ़न मे
स्वेद जाँतल धूलि कण मे
सदन मे भुखमरी आ-
एहि कब्र मे आहार केहेन?
सर्वहारा केँ सता क'
खून पी क' माँसु खा क'
हाड़ सं की ल' रहल अछि
याचनाक भार केहेन?
वृथा शोषण मे लुटयलहुँ
कोण नहि रोटीक पयलहुँ
आइयो पूंजी परिधि पर
केंद्र केर व्यवहार केहेन?
भूख केर फेर त'ब मे परि
बनि गेलहुँ आहार जरि-जरि
एक आँजुर छार सं रे
क्रूर -प्रत्युपकार केहेन?
महल केँ मन मे ने आनू
कुटी केँ सर्वस्व मानू
हास मे अछि बचल की
हे देखू- "हाहाकार केहेन"?