हा ! पटेल !!! / विमल राजस्थानी
ओ बंधु ! सुनाई तुमने कैसी बात कि ‘वल्लभ’ नहीं रहे
सुनकर कैसी गुजरी दिल पर, सहसा कवि-मन क्या बात कहे
(1)
सुन, आँसू उमड़े आते हैं
घायल दिल बैठा जाता है
लड़खड़ा रही सूखी जुबान
रोआँ-रोआँ चिल्लाता है
(2)
वह मर्द कि तो तूफानों से
हँस-हँस कर लोहा लेता था
वह वीर कि जो झंझावातों-
के बीच तरणि को खेता था
(3)
वह सिंह कि जिसके गर्जन से
भूमंडल डोला करता था
जिसका वीरत्व हिमालय के-
सिर चढ़ कर बोला करता था
(4)
वह ‘लौह-पुरूष’ जिसके आगे
घुटने राजाओं ने टेके
महलों के रक्त-पुते पाये
जिसने पल में उखाड़ फेंके
(5)
जिसके इंगित पर न्यौछावर
‘खेड़ा’ में कोटि जवान हुए
माता की वेदी पर बलि दे
चिर स्मरणीय, महान हुए
(6)
वह वीर ‘जवाहर’ का साथी
दाहिना हाथ, दिल औ’ दिमाग
वह नये राष्ट्र का उपनेता
प्रज्वलित वीरता का चिराग
(7)
बुझ गया, आज की यह संध्या-
वंचित उस लौ की लाली से
वंचित हो गया मातृ-मंदिर
उस ज्योतित अमर दीवाली से
(8)
रे आज कि जब ‘ऐटम-बम’ के-
भय से भूंमडल डोल रहा
रे आज कि जब बूढ़ा ‘नगपति’-
भी अपने बंधन खोल रहा
(9)
जब ‘काश्मीर’ पर मँडराती-
भूखे गिद्धों की टोली है
पूरब-पश्चिम की सीमा पर-
अल्ला-अकबर की बोली है
(10)
जब अपनी आस्तीन में भी
साँपों के शिशु फुंकार रहे
कुछ करने में असमर्थ राष्ट्र
जब था तेरी ही शरण गहे
(11)
ऐसे असमय में क्रूर काल-
ने तुमको हमसे छीना है
जब तलवारों की नोकों पर
इस तरूण राष्ट्र का सीना है
(12)
भगवान शरण दें चरणों में
‘सरदार’ ! तुम्हें सुख-शांति मिल
दो आशीर्वाद कि आजादी-
का बिरूआ फूले और फले