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हिंदी/ राम लखारा ‘विपुल‘
Kavita Kosh से
हिंदी है अभिमान हमारा़
हिंदी जन मन गान !
हिंदी है भारत की वाणी
हिंदी जनगण की कल्याणी
हिंदी से है हिन्द हमारा
हिंदी पुरखों की ‘सैलाणी‘
हिंदी है गंगा की धारा
हिंदी मातृ समान!
हिंदी है अभिमान हमारा़
हिंदी जन मन गान !
हिंदी से ही स्वर की गुंजन
और भाते भांति के व्यंजन
हिंदी से ही पर्व हमारे
हिंदी मन का करती रंजन
हिंदी कविता का इकतारा
हिंदी प्राण समान!!
हिंदी है अभिमान हमारा़
हिंदी जन मन गान !
सूर कबीर की हिंदी माई
खुसरों को भी हिंदी भाई
दिनकर बच्चन पंत निराला
सबने इसमें ली अंगड़ाई
हिंदी ने मुझको भी तारा
पारस लौह समान!!
हिंदी है अभिमान हमारा़
हिंदी जन मन गान !