भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिचकते औ' होते भयभीत / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
हिचकते औ' होते भयभीत
सुरा को जो करते स्वीकार,
उन्हें वह मस्ती का उपहार
हलाहल बनकर देता मार;
मगर जो उत्सुक-मन, झुक-झूम
हलाहल पी जाते सह्लाद,
उन्हें इस विष में होता प्राप्त
अमर मदिरा का मादक स्वाद।