हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता
एक ही इश्क़ दोबारा तो नहीं हो सकता
चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ
शहर का शहर हमारा तो नहीं हो सकता
कब तलक क़ैद रखूँ आँख में बीनाई को
सिर्फ़ ख़्वाबों से गुज़ारा तो नहीं हो सकता
रात को छील के बैठा हूँ तो दिन निकला है
अब मैं सूरज से सितारा तो नहीं हो सकता
दिल की बीनाई को भी साथ मिला ले ‘गौहर’
आँख से सारा नज़ारा तो नहीं हो सकता