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हिनका ऊबारोॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
सुरजोॅ के तापोॅ सें
धरती के छाती
जेनाकि तपै छै
होनै केॅ
यै धरती के बेटा किसान
महाजनोॅ के सुरजोॅ सें
जली रहलोॅ छै
छन छन
जर्जर प्राण
मुख अम्लान
सुखलोॅ ठोरोॅ पर ओकरोॅ
छै फिक्का मुस्कान
सुनोॅ
धरती केॅ कोड़ी
जें जीवन उपजाबै छै
हुनका उठाबोॅ
सुरजोॅ के तापोॅ सें हुनका उबारोॅ
जे जन मन के प्राण छेकै
जेकरोॅ कोय ठिकानोॅ नै छै
हमरा ऐतना कहना छै
कवि सिनी सें
कविता लिखोॅ
मतुर कि हिनकै लेॅ
जे मरै छै सभ्भै लेॅ
सगरे लेॅ ।