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हिनहिनाता घोड़ा / सांवर दइया
Kavita Kosh से
यह एकांत
यह कमरा
रेशमी अंधेरा ओढ़े
सुगंध बिखेरती संदली देह
छूते ही देह
नस-नस में
तनतनाता है
पानी
लगता है
मैं
मैं नहीं
हिनहिनाता घोड़ा हूं !