हिन्दीवादी / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
पराधीन भारत केॅ तोंही, नया ज्ञान के मंत्रा सिखैलौ,
शिक्षा मिलेॅ कि हेनोॅ जैसेॅ, रोजगार भी मिलेॅµबतैलौ ।
छुच्छे ज्ञान किताबोॅ केरोॅ, की मानें राखै छै; बेरथ,
शिक्षा वही तेॅ शिक्षा छेकै, सधे घरोॅ के जैसें स्वारथ ।
बापू, तोहें परवश युग केॅ स्वालम्बन के पाठ सिखैलौं,
पराधीन भारत मेॅ बापू, देवदूत रं तोहें ऐलौ ।
शिक्षा केरोॅ पा}जन्य ठो, बाजी उठलै, नाद सघन
अंग्रेजी शिक्षा पर चललै, देशी शिक्षा हन, हन, हन ।
बापू, तोंही तेॅ बतलैलौ, अपनोॅ भाषा केरोॅ मान,
हिन्दी सेॅ ही मुक्ति पैतै, ई सौंसे ठो हिन्दुस्तान ।
हिन्दी के बदला अंग्रेजी, राज करेॅ ई भारत मेॅ,
कौनें विष केॅ घोरी मिलावै, गंगाजल के अक्षत मेॅ ।
अपने भाषा में शिक्षा सेॅ, भारत केॅ मिलतै स्वराज,
झपटै भारत के भाषा पर, अंग्रेजी के खूनी बाज ।
रोकै लेॅ पड़तै जल्दी सेॅ, अंग्रेजी के चाल चलन,
की स्वराज मिलतै बिन एकरोॅ ई विदेशी के बिना दलन?
बापू ई तोहीं बतलैलौ, शिक्षाओ सेॅ बड़ोॅ, चरित्रा
सतचरित्रा ही नर के भूषण, यही बंधु आ स्वजन-मित्रा ।
हिन्दी आय जहां पर शोभै, बापू तोरे मन के मोॅन,
बनलोॅ छै सौंसे भारत के गुप्त खजाना; मिललोॅ धोॅन ।
बापू तोरोॅ राष्टप्रेम के छटा निखरलोॅ सब्भे ओर,
भू, जन, भाषा; जहां अन्हरिया, वहीं-वहीं पर तोहें भोर ।
के बोलै छै तोरा नफरत अंग्रेजी सेॅ छेलौं घोर ?
तोहें तेॅ देखौ छेलौ बस, हिन्दी सेॅ ही होतै भोर ।
हिन्दी-हिन्दुस्तानी में तेॅ कुछुवो नै छै भेद कहीं,
हिन्दु-मुस्लिम के ई भाषा, हाँ हिन्दी स्वराज वहीं ।
लिखोॅ नागरी मेॅ ई भाषा, आकि फारसी लिपिये मेॅ,
की अन्तर हिन्दी मेॅ आवै, मोती दोनो सिपिये मेॅ ।
पर साथे-साथे बतलैलौ श्रेष्ठ नागरी, हिन्दी लेॅ,
मानसरोवर रं ई सुन्दर, भारत माय के बिन्दी लेॅ ।
बापू, तोरे छेलौं सपना हिन्दी दक्खिन, उत्तर तक
लहरैतै सुन्दर सुवास रं, पूरब-पश्चिम के घर तक ।
बापू तोंही ई बतलैलौ, हिन्दी के अपमान-अनादर,
एकरा सेॅ कुछुवोॅ नै कम छै, भारत माय के भटकेॅ दर-दर ।
देशभक्त ऊ हुवै नै पारेॅ, निजभाषा सेॅ नै छै प्रेम,
हिन्दी ही पूछेॅ पारेॅ छै, भारत भर के कुशलो क्षेम ।
जे हिन्दी केॅ तुलसी हेनोॅ महाकवि छै, ऊ भाषा
ओकरो कैन्हेंनी भारी होतै, दोनों पलड़ा ठो पासा ।
‘हिन्दी नवजीवन’ के ऐवोॅ हिन्दी तेॅ प्राण समान,
हिन्दी लेॅ चिन्ता बापू के, समाधिस्त योगी रोॅ ध्यान ।
बापू तोरोॅ किंछा छेलौं हिन्दी लेॅ मेॅ काॅग्रेस के काज,
चलेॅ कहूँ नै भारत भर मेॅ अंग्रेजी भाषा के राज ।
यै लेॅ बहुत जरूरी छै कि, सबकेॅ शिक्षा हुएॅ सुलभ,
माय के भाषा हेनोॅ भाषा, केकरो लेॅ छै नै दुर्लभ ।
पराधीन भारत में बापू, हिन्दी लेॅ सम्बल-दीवार
भारत नेॅ देखलकै तखनी, हिन्दी के सुन्दर संसार ।
हिन्दी के उद्धारक बापू, हिन्दी केरोॅ सच्चा पूत,
हिन्दी के रक्षा लेली तोंय, बनले रहयौ ज्यों अवधूत ।
आय जहाँ पर हिन्दी राजै, बापू, तोरे पुण्य प्रसाद,
तोरे स्वर हिन्दी में गूंजै, हिन्दी के युगव्यापी नाद ।