भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिमालय / राहुल शिवाय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वर्षों से गिरिराज कहाता
अचल, अडिग यह खडा हिमालय,
पा कर अम्बर-सी ऊंचाई
जुडकर गिरि-गिरि बढा हिमालय।

लेकिन ऊंचाई पाकर भी
कभी नहीं अभिमान को पाला,
करुणामय गंगा-यमुना को
यह जग-हित है देने वाला।

यह रक्षक है, यह है दानी
इस कारण गिरिराज कहाता,
केवल ऊंचाई पाकर ही
कोई मान नहीं है पाता।

शक्ति तभी पूजी जाती है
जब होती वह लोक सहायक,
वही योग्य राजा बनने का
जो होगा जन-जन का नायक।