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हियाँ न भुइयाँ हैं नींबी तर / भारतेन्दु मिश्र

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हियाँ न भुइयाँ हैं नींबी तर
ना गौरी, न गनेस
सजनवा! चल अपने घर देस

धीरज के ख्ुालि रहें किंवाड़े
हियाँ सुपास न बइठे-ठाढ़े
पइसा खातिर जरै जिन्दगी
रहु-रहु, बस-बस करै जिन्दगी

भूखे भेड़हा घूमि रहे हैं
धरे संत का भेस।

जा दिन ते मैं घर ते आयी
दीख न सबिता अउर जोन्हायी
पुरिखा-पुरखिन दफन हुइ गये
ख्यात-पात सब सपन हुइ गये

छूटि जाय ना कहूँ गाव के
बरगद क्यार लगेस।

मोती-कूकुर, मिठुआ-सुग्गा
दुल्ला-दीदी, काका-जग्गा
रामकली रामायन बाँचै
सबकी यादि आँखि मा नाचै

सालु बीतिगा लउटि चलौ घर
अब ना करौ कलेस।