भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिया हमार तार-तार हो गइल / मनोज भावुक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

KKGlobal}}


हिया हमार तार-तार हो गइल
बेकार में ही आँख चार हो गइल

नजर नजर के आर-पार हो गइल
त तेज शायरी के धार हो गइल

मना कइल गइल जे काम, मत करऽ
उहे त काम बार-बार हो गइल

हिया हिया से ए तरे मिलल कि अब
उहे हमार घर-दुआर हो गइल

तहार साथ छूटते ई का भइल
धुँआ-धुँआ उठल, अन्हार हो गइल

ऊ बेवफा कहीं ना चैन पा सके
जे चैन लूट के फरार हो गइल