भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था / शबाना यूसफ़
Kavita Kosh से
हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था
क़रीब ऐसे तुझे मेरी जान होना था
तिरी जबीं पे शिकन क्यूँ विसाल-लम्हे में
मोहब्बतों का यहाँ तो निशान होना था
तुम्हारे छूने से कुछ रौशनी बदन को मिली
वगरना उस को फ़क़त राख-दान होना था
तुम्हारी नफ़रतों ने मिट्टी में मिला डाला
जो ख़्वाब तारा सा पल्कों की शान होना था
बहुत ही थोड़ी थी दिल में तुम्हारे उम्र मिरी
थी ख़्वाब-ज़ाद मुझे दास्तान होना था
बिछड़ गया तो ‘शबाना’ मलाल क्या करना
उसे बिछड़ना था वहम ओ गुमान होना था