♦ रचनाकार: अज्ञात
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हीरा मोती का गंज पड़िया
आता सा फलाणा राम फिसल पड़िया
दौड़ता-सा छोटा भई ने झेल लिया
घणीखमा हो दादा म्हारा घणीखमा
काय की तमखे दादा फिकर पड़ी
हमखे काव करने की फिकर पड़ी
वे तो दाल-कड़ी का गंज पड़िया
आता-सा जमई जी फिसल पड़िया
दौड़ती-सी बईरां ने झेल लिया
घणीखमा हो म्हारा राज घणीखमा
काय की फिकर तमखे पड़ी
संडास सोरने की फिकर हमखे पड़े